किल्ले विशालगढ
किल्ले विशालगढ़ नाम के जैसे ही बड़ा विशाल किला है। सैह्याद्री की पर्वतश्रुनखला से हटे इस किले से जुड़ा एक बेहद रोचक किस्सा है। जिसकी वजह से विशालगढ़ किले को मराठा और महाराष्ट्र के इतिहास के साथ साथ भारत के इतिहास में हुई एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह किला महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में स्थित है। विशालगढ एक गिरीदुर्ग किला है। यानी की एक पहाड़ पर बना हुआ किला है।
![]() |
विशालगढ़ किला |
विशालगढ किले को कई नामो से जाना जाता था जैसे की खेलना, विशालगढ, सरवलना, भोजगढ़ ऐसे कही नामो से अलग अलग कालखंड में जाना जाता था। विशालगढ़ एक समय हिंदवी स्वराज्य की राजधानी भी था। और इस किले ने अपने विशाल जीवनकाल में अनेक लढ़ाइया भी देखी है।
विशालगड का इतिहास
दूसरा राजा भोज: इसने अपनी राजधानी जब कोल्हापुर से पन्हाला हटाई तभी इस किले का निर्माण किया गया। इसके बाद यह किला यादवों के कब्जे में था। यादव सत्ता का अस्त होने के बाद यह किला बहामानी सत्ता के पास था। इस १४५३ में बहाकानी सेनापति मलिक उद्धुजार ने प्रचितगढ पर आक्रमण कर किले पर कब्जा किया। उस समय यह किला प्रचितगढ़ के सेनापति शिर्के के पास था। प्रचितगढ़ पर कब्जा करने के बाद मलिक उद्धुजार ने शिर्के को इस्लाम कबूलने के लिए कहा लेकिन चालाक शिर्के ने जवाब में यह कहा की वह इस्लाम तभी कुल करेंगे जब शिर्के का दुश्मन खेलना किले के किल्लेदार शंकरराव मोरे इस्लाम कबुल करेंगे। खेलना किले पर कब्जा करने के लिए शिर्के पूरी मदद करने को तैयार थे। यह देखकर मलिक उद्धिजार शिर्के की मदद से खेलना किले पर कब्जा करने निकला।रास्ता घने जंगल से होकर गुजरता था। इसलिए ज्यादा सेना साथ ले जा असंभव था। इसलिए कुछ सेना को विशालगढ़ पर रखकर शिर्के और मलिक थोड़ी सेना के साथ खेलना किला कब्जाने निकल पड़े। २ दिन के सफर के बाद जब सेना काफी थक चुकी थी तब शिर्के ने खेलना किले के किलेदार की मदद से मलिक उद्धुजार पर हमला कर मलिक और उसकी सेना को हराकर मार दिया। इसका बदला लेने के लिए १४६९ साल में बहामानी सुलतान ने अपने सरदार मलिक रेहान को खेलन और विशालगढ़ किले पर कब्जा करने भेजा। ६ बार तो मलिक रेहान भी असफल रहा ७ वे आक्रमण के बाद लगभग ९ महीनो की कठिन लड़ाई के बाद यह विशालगढ़ किला बहामानी सरदार ने कब्जा लिया। विशालगढ किले पर जो मलिक रेहान नाम से दर्गा है वह इसी मलिक रेहान के नाम से है। उसके बाद लगभग २०० सालो तक यह किला बहामानी सल्तनत में ही रहा।
आखिर शिवाजी महाराज ने २८ नवंबर १६५९ के दिन किल्ले पन्हाला कब्जा लिया उसी वक्त शिवाजी महाराज ने खेलना किला भी जीत लिए किला जीतने के बाद शिवाजी महाराज ने खेलना किले का नाम बदलकर विशालगढ़ रख दिया। इसके बाद मराठा साम्राज्य और मुगल साम्राज्य के बीच कई लढ़ाई इस किले पर हुई है।
मराठा इतिहास में विशालगढ़ से जुड़ा एक बहुत दिलचस्प किस्सा है जिसे पावनखिंड की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। ३०० मावले के साथ बाजिप्रभू देशपांडे पन्हाला से विशालगढ की तरफ जाते शिवाजी महाराज को बचाने के लिए हजारों की मुगल सेना से साथ लडकर अपने प्राणों की आहुति तक दे दी।
![]() |
पावनखिंड |
विशालगढ की देखने लायक कुछ वास्तु
राजमहल
विशालगढ किले पर एक भव्य राजमहल हुआ करता था। यह राजमहल स्वराज्य के पंतप्रतिनिधि का था। जो की यहाके जहागीरदार भी थे। सैकडो सालो में यह राजमहल काफी ध्वस्त हुआ है और अब यह एक खंडहर बनकर रह गया है।![]() |
विशालगढ़ किला |
शादी की बारात पॉइंट
यह एक जगह है जो की विशालगढ़ पर स्थित है। शादी की बरात पॉइंट एक ऐसी जगह है जो की शादी के जाते हुए बाराती की तरह दिखती है। असल में बहुत सारे छोटे छोटे पहाड़ों का यह समूह है जो की किसी बारात की तरह दिखाई पड़ता है।पाताल दरी
किले से नीचे उतरने के लिए जो २ रास्ते है उन्ही मे से एक रास्ता तकमक टोक की तरफ जाता है और दूसरा रास्ता पाताल दरी की ओर जाता है। पाताल दरी में ही शिवाजी महाराज के शुर सरदार बाजिप्रभु देशपांडे और उनके बड़े भाई फुलाजी देशपांडे की समाधि दिखाई पड़ती है। जिन्होने अपने महाराज को बचाने के लिए घोड़खिंड जिसे पावनखिंड के नाम से भी जाना जाता है। वहा बस मुट्ठीभर बांदल सेना के साथ हजारों की मुगल सेना से तबतक युद्ध लड़ते रहे जबतक शिवाजी महाराज सहिसलामत विशालगढ पर नही पहुंचे।यह युद्ध मराठा इतिहास के सबसे प्रसिद्ध युद्ध में से एक है।![]() |
पाताल दरी |
पहले छत्रपति राजाराम महाराज की पत्नी अंबिकाबाई की समाधी
स्वराज्य के तीसरे छत्रपति और शिवाजी महाराज के छोटे बेटे छत्रपति राजाराम महाराज की पत्नी अंबिकाबाई भोसले की समाधि भी इसी विशालगढ किले पर है। जब आप रणमंडल टेकडी से किले के नीचे उतरते हो तब उतरते वक्त बिचमे ही एक समाधि दिखाई पड़ती है जो की स्वराज्य के तीसरे छत्रपति की पत्नी अंबिकाबाई की है।महादेव मंदिर
राजमहल के दक्षिण दिशा के दरवाजे के बाहर एक गोल कुआ दिखाई पड़ता है उसी कुएं के अंदर भगवान शिवशंकर का मंदिर है। जिसे पूजने हररोज किले के लोग आया करते थे। यहासे थोड़ा दूर जाते ही टक मक टोक दिखाई पड़ता है।चौकोनी कुआ
यह चौकोनी कुआ काफी बड़ा है। और यहापर एक छोटी सी गुफा भी है। जो की काफी छोटी है। लेकिन अगर रेलते हुए जाए तो यह गुफा सीधा राजमहल के बड़े दरवाजे के पास निकलती है।हजरत सैयद मलिक रेहान दर्गा
यह दर्गा सैय्यद मलिक के नाम से बना हुआ है। इसे विशालगढ दर्गा के नाम से भी जाना जाता है। यह वही रेहान मलिक है जिसने शिर्के से ७ बार लड़ाई लढकर आखिर किले पर कब्जा कर लिया था। यह दर्गा आज बहुत सारे भक्तो से भरा हुआ होता है। और यह अफसोस की बात है की देश के इतने बड़े ऐतिहासिक स्थान को भाविको द्वारा कचरे से भरा जा रहा है।हमे लगता है की देश की ऐसी अनमोल संपत्ति को संवर्धन करने की जरूरत है। धन्यवाद।
Behad Sundarta Post
जवाब देंहटाएं