जिंजी किले के बारे में जानकारी | information about jinji/gingee

जिंजी किले के बारे में जानकारी

हिंदवी स्वराज की तिसरी राजधानी माना जाने वाला किला जिंजी  तमिलनाडु राज्य में विलुपुरम जिले के पास स्थित हैं, "सेंजी" ऐवम "चेंजिं" नाम से जिंजी किला जाना जाता है ये किला 183 फिट ऊंचाई पर हैं, स्वराज्य जब खतरे में था तब "छत्रपति शिवाजी महाराज" ने कोई एक सुरक्षित जगह होनी चाहिए इसलिए इस जिंजी किले को जित लिया था "छत्रपति संभाजी महाराज" के मृत्यु के बाद "छत्रपति राजाराम महाराज" पन्हाला की घेरबंदी से बचके जिंजी किले पर पहुंच गए छत्रपति शिवाजी महाराज का दूर दृष्टिकोण काम पे आया इसी कारण "छत्रपति राजाराम राजा" इन्होंने जिंजी किले को स्वराज की तिसरी राजधानी बनाने का निर्णय लिया "राजगिरी कृष्णागिरी और चंद्रगिरी" इन तिन किले का समूह मतलब जिंजी किला इसमें से "राजगिरी" यह दुर्गम है,मोहम्मद नासिरखान के पास से जब किला जिता गया था तब "छत्रपति शिवाजी महाराज" ने इस किले का नाम "शारंगगड" रखा था परंतु दोबारा से "छत्रपति राजाराम महाराज" के पास से किला झुल्फीकारखान ने लेने के बाद इस किले का नाम नुसरतगड रखा गया था।

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किले में प्रवेश करने के बाद, जिंजी किले पर राज करने वाले राजाओं का कालखंड और शाही परिवार से संबंधित मूर्तियां देखने मिलेंगे,

किले में देखने लायक जगह

जिमखाना

हाती की टंकी

घोडा हस्तबल

कल्याण महाल

इंडो इस्लामिक शैली में ये महल बांधा गया था,कल्याण महल में 8 मंजिल है पांचवी मंजिल के ऊपर का हिस्सा पिरामिड के आकार का हैं। ऐसा माना जाता है इस पांचवी मंजिल पर महिलाएं रहा करती थी यहां पर शादी समारोह हुआ करते थे।इस महल में पानी का व्यवस्थापन काफी अच्छी तरह से किया जाता था।

मोहम्मद नासिरखान के पास से जब किला जीता गया था तब "छत्रपति शिवाजी महाराज" ने इस किले का नाम शाहरंगगड रखा था।परंतु,दोबारा से "छत्रपति राजाराम महाराज" के पास एक इलाखा आने के बाद इस किले का नाम नुसरतगड रखा गया था।

छत्रपति संभाजी महाराज के निधन के बाद उनके छोटे भाई छत्रपति राजाराम महाराज ने जिंजी से ही स्वराज का कारभार संभाला. संभाजी महाराज के निधन के बाद मुग़ल सेना स्वराज्य पर चारो और से हमला कर रही थी. और राज्य के राजा के ही मारे जाने के बाद स्वराज की सेना का हौसला पस्त हो चूका था. लेकिन कुछ बहदुर सरदार को साथ लेकर राजाराम महाराज ने स्वराज्य की लड़ाई फिर से खड़ी की और मुघलो को जोरदार टक्कर दी. और आखिर तक ओरंगजेब कभी भी दक्कन पर राज नहीं कर सका और उसने अपनी अंतिम सास भी इस नाकाम सपने के साथ ही ली. 




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