लोहगढ़ किला लोनावला का सबसे प्रसिद्ध किला | lohagad kila

लोहगढ़ किला लोनावला का सबसे प्रसिद्ध किला

मलवली के पास लोनावाला से से कुछ ही किलोमीटर दूर यह किला जिसे लोहगढ़ के नाम से जाना जाता है। लोगगढ़ किला महाराष्ट्र के बहुत से पहाड़ी किलो में से एक है यह पहाड़ी इलाके लोनावला के बाद होने के उत्तरी भाग में 52 किलोमीटर की दूरी पर बना हुआ है लोहगढ़ किला समुद्री सतह से लगभग 1033 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है यह किला अपने पड़ोसी वीजापुर किले से जुड़ा हुआ है। ज्यादातर समय यह किला मराठा साम्राज्य के पास रहा बल्कि केवल 5 वर्षों तक ही यह किला मुघलों के पास रहा था। वर्तमान में भारत सरकार इस किले को संरक्षित कर रही है। लोहगढ़ किले के आसपास के आकर्षक स्थल लोनावला है जो कि लोहगढ़ स 20 किलोमीटर दूर है वह एक प्रसिद्ध और सुंदर पहाड़ी इलाका मलवली से 2 किलोमीटर दूर जो कि किसी समय में बुद्ध संतों का निवास हुआ करता था। लोहागढ़ का किला यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया जा चुका है। लोहागढ़ किले में प्राचीन वास्तुकला का बहुत अच्छा नमूना देखने को मिलता है। लोहगढ़ किले के पास ही लोह गाव नाम का एक गांव है जहां से लोहागढ़ के लिए सीढ़ियां है।  यह किला ट्रेकर्स के लिए बहुत ज्यादा पसंदीदा जगह है।

लोहगढ़ किला लोनावला का सबसे प्रसिद्ध किला lohagad fort information in hindi
लोहगड किल्ला | लोहगढ़ किला | lohagad fort


लोहगढ़ का इतिहास

लोहगढ़ का इतिहास काफी गहरा रहा है। अलग-अलग समय में अलग-अलग साम्राज्य ने इस पर राज किया जिनमें मुख्य रुप से सातवाहन चालूक्य निजाम मुगल और मराठा शामिल है। 1648 में शिवाजी महाराज ने इसे अपने कब्जे में लिया था लेकिन 1665 पुरंदर की संधि के चलते शिवाजी महाराज को यह किला मुगलों को सौंपना पड़ा। शिवाजी महाराज ने 1670 के साल में इस किले को पुनः मराठा साम्राज्य में शामिल कर लिया था। और इस किले का उपयोग वे अपने खजाने को रखने के लिए करते थे। इसके किले उपयोग मराठा साम्राज्य में सूरत से लूटे हुए माल को रखने के लिए नियुक्त किया गया था। बाद में पेशवा के समय में नाना फडणवीस ने कुछ समय तक इसका उपयोग रहने के लिए किया और किले के अंदर विशाल टैंक और सीढ़ियों का निर्माण करवाया।

लोहगढ़ किले में देखने लायक जगह

किले का पहला दरवाजा गणेश दरवाजा इस दरवाजे के निर्माण पद्धती गोमुख पद्धति की है इस बांधनी पद्धति में दरवाजा दोनों बूरूजो के अंदर छुपाया जाता है जिससे कि इस पर तोपो का वार ना हो सके किले का यह पहला दरवाजा बहुत ही सुंदर नक्शी से तराशा गया है।
गणेश दरवाजे से अंदर आते ही आपको एक बड़ी खुली जगह देखने को मिलेगी जहां पर किले का लश्कर हुआ करता था और यहीं पर आपको एक शिलालेख देखने को मिलेगा। इस शिलालेख के अनुसार नाना फडणवीस ने गणेश दरवाजे का निर्माण 1 नवंबर 17 सितंबर 17 जून 1791  में करवाया था। बाजू में ही एक प्रकाश खोली है इस होली में प्रकाश आने के लिए एक बड़ी खिड़की दी हुई है इस खिड़की से बाहर नजर रखने के लिए तीन सैनिकों के दिए हुई हैं। यहीं पर आगे हमें दिंडी गुल बूरुज देखने को मिलता है डिंडीगुल बुरूज यहां पर एक उदवंत दारु गोला कोठार हुआ करता था। जो की अभी पूरी तरह से खंडहर बना हुआ है।

यहीं से पश्चिम की ओर एक छोटा दरवाजा देखने को मिलता है जिसे चोर डिंदी भी कहा जाता है इसे तब यूज किया जाता था जब दुश्मन ने के लिए को घेर लिया हुआ करता था और किले पर छोटी रसद या हथियार पहुंचाना पड़ता था। तब इस दरवाजे से सामान किले के अंदर पहुंचाया जाता था।

धान्य कोठार उस समय में अनाज को जमा करके रखने के लिए इसका उपयोग किया जाता था। यह कोठार लोहगढ़ पर २ की संख्या में है। और अभी भी देखे जा सकते है।

दरवाजा नारायण दरवाजे से अंदर जाने पर आपको हनुमान दरवाजा देखने को मिलता है और आखरी दरवाजा जोकि महाद्वार है इस दरवाजे पर दुश्मन सेना तोप गोले नहीं डाग सकती। इसी तरह की कुछ इसकी संरचना है। यह एक से बढ़कर एक 5 दरवाजे सर करने के बाद आप गढ़ पर पहुंचते हो।

लोहागढ़ किले की यात्रा करना अपने आप में एक बहुत ही एक अद्भुत आनंद है इसके इसके पास ही विदा पुर का किला है जहां पर आप इसके साथ विसापुर का किला और लोनावाला की यात्रा कर सकते हैं गणेश दरवाजा लोहागढ़ किले में चार प्रवेश द्वार है जोकि गणेश दरवाजा नारायण दरवाजा हनुमान दरवाजा और महा दरवाजे के नाम से जाने जाते हैं हर और हर दरवाजे पर कुछ नक्काशी दार सुंदर मूर्तियां देखी जा सकती है लोहागढ़ किले का एक प्रसिद्ध स्थान विंचू कड़ा है जो की पहाड़ी की पहाड़ियों की एक श्रृंखला है।

महा दरवाजे से अंदर जाते ही आपको एक कबर देखने को मिलेगी जिसकी संरचना ईरान की वास्तुकला से संबंधित है मराठा इतिहास में इस कबर का जिक्र औरंगजेब की बेटी के नाम से है। इस खबर के पीछे पानी की टंकी हुआ करती थी और बाजू में सदर इसी कबर के पास दो ब्रिटिश कालीन तोपे और उसकी पहिए देखने को मिल सकते हैं। जो सदर इस कबर के बाजू में हैं उसे शिवकालीन सभागृह कहते हैं इस किले पर आपको लोहार खाने की इमारत चार चौकी बड़ी सर और किल्लेदार का वाड़ा दिखेगा। लेकिन यह सब इमारते काफी ढह गई है। ज्यादातर इमारतें खंडहर में तब्दील हो चुकी है।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें