पुरंदर का युद्ध/ purnadar Fort War
मराठा साम्राज्य के सबसे बडी और घनघोर लड़ाइयों में से एक युद्ध पुरंदर किले पर हुआ था। इस युद्ध में मराठाओं के लगभग ४०० सैनिक और मुघलों के २००० से ज्यादा सैनिक मारे गए।
इस पुरंदर की लड़ाई से पहले छत्रपति शिवाजी महाराज ने सूरत शहर पर छापा मारकर सूरत शहर की लूट की क्योंकि शिवाजी महाराज औरंगजेब को जताना चाहते थे कि स्वराज्य कोई कमजोर राज्य नहीं है। अगर औरंगजेब ने इसी तरह से स्वराज्य पर हमला जारी रखा तो स्वराज्य की ओर से कड़ा जवाब मिलेगा। लेकिन जैसा मराठाओं ने सोचा था उसके बिलकुल उल्टा हुआ। सूरत के छापे के बाद औरंगजेब बहुत गुस्सा हुआ और स्वराज्य के और शिवाजी महाराज के खिलाफ बहुत बड़ा युद्ध करने की तैयारी उसने शुरू कि। यह सब हो रहा था १५५९ के जनवरी महीने में लगभग तीन महीने की तैयारी के बाद मार्च महीने में औरंगजेब ने मिर्जा राजे जयसिंग को दख्खन में स्वराज्य पर हमला करने के लिए भेजा और उसकी मदत करने के लिए उसके साथ दिलेरखन जैसा नामी सरदार भी इस मुहिम में शामिल हुआ था।
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पुरंदर का युद्ध/ purnadar Fort War |
१४००० की फौज के साथ तोपगोले,घुड़सवार और काफी सारे असले के साथ स्वराज्य पर हमला करने के लिए मिर्जा राजे जयसिंग स्वराज्य में दाखिल हुआ। लेकिन मराठाओं से सीधी टक्कर लेने की बजाय उसने शिवाजी महाराज से नाराज़ लोगो को साथ लेकर स्वराज्य के छोटे बड़े किलो पर हमला करना शुरू कर दिया। स्वराज्य में आते आते १४००० की मिर्जा राजे जयसिंग की फौज लगभग ३०००० की हो चुकी थी।
मिर्जा राजे जयसिंग लड़ाई करते करते मुगल पुणे के सासवड गांव के पास आ गये। यहासे आगे दिलेर खान तोपखाने के साथ आगे बढ़ने वाला था और मिर्जा राजे जयसिंग अलग दिशा में युद्ध के लिए जाने वाला था। जब दिलेर खान की फौज सासवड गांव पहुंची तब रात भर के लिए दिलेर खान वहीं रुक गया। यहिसे पुरंदर किले के युद्ध को शुरुवात होती है। हुआ ये कि रात के समय जब सारे मुगल आराम कर रहे थे तभी मराठाओं की एक टुकड़ी ने मुघलों पर धाबा बोल दिया। मराठा ज्यादातर गोरिल्ला वारफेयर(गनिमी कावा) का इस्तेमाल करते थे। यह सब इसी युद्धनीति का हिस्सा था। जैसे ही मराठाओ ने दिलेर खान की छावनी पर हमला बोल दिया। हर तरफ भयंकर युद्ध हो गया। लेकिन कुछ ही वक्त में मराठाओं ने अपने पैर पीछे हटा लिया और जितने हो सकता है उतने मुघलों को मारकर मराठा भाग निकले।
अपने ऊपर हुए हमले की वजह से दिलेर खान बहुत गुस्सा हो गया। उसने अपनी सेना के साथ मराठा सैनिकों का पीछा करना शुरू किया पीछा करते करते दिलेर खान पुरंदर किले के पास आ गया। मराठा सैनिक मुघलों को खदेडकर पुरंदर किले पर जा पहुंचे। पुरंदर किला बहुत प्रचंड और लगभग अजिंक्य किला था। उसके साथ साथ पुरंदर स्वराज्य के सबसे महत्वपूर्ण किलो में से एक था। क्योंकि पुरंदर किले की ऊंचाई काफी ज्यादा थी। और बेहद मजबूत यह किला इस किले पर जीत हासिल करना बेहद चुनौतीभरा काम था। इसलिए दिलेर खान ने आस पास के छोटे छोटे किले जहापर मराठा सैनिकों कि संख्या ३००-४०० से भी कम थी उन किलो पर हमला करके उन्हें जीतना शुरू किया क्योंकि मुघलों के पास ऐसी कोई तोप नहीं थी जो पुरंदर के नीचे से पुरंदर किले पर गोले दाग सके इसलिए उसने आस पास के छोटे सहाय्यक किलो पर कब्जा कर लिया इसी बीच पुरंदर किले के चारो तरफ अपनी सेना तो तैनात कर दिया और पुरंदर के चारो तरफ से घेराबंदी कर दी। ताकि जब दिलेर खान पुरंदर किले के सहाय्यक किलो पर हमला कर रहा हो तब पुरंदर किले कि ओर से किसी भी तरह की मदत उन छोटे किलो तक ना पहुंचे।
पुरंदर किला अजिंक्य होने का कारण यही छोटे सहायक किले थे। इन्हीं पुरंदर के सहायक किलो में से एक था वज्रगड़। यह किला खास था क्योंकि वज्रगड पुरंदर के काफी नजदीक था इतना की यहासे पुरंदर किले पर तोपे चलाई जा सकती थी। इसलिए दिलेर खान ने वज्रगड पर हमला करके किले को अपने कब्जे में ले लिया। पकडे गए मराठा सैनिकों को दिलेर खान ने मिर्जा राजे जयसिंग के पास भेज दिया। और फिर किले पर अपनी तोपे लगाना शुरू किया। अब तक वज्रगड से पुरंदर किले पर टोपगोले बरसाना शुरू हो चुका था। पुरंदर किले कि तटबंदी तोडकर अपनी सेना को अंदर प्रवेश कराकर पुरंदर किले पर कब्जा करने की उसकी मंशा थी।
पुरंदर की रक्षा करनेवाले किलेदार मुरारबाजी देशपांडे को पता था कि अगर पुरंदर की एक भी माची या बुरूज ढह गया तो पुरंदर को बचाना नामुमकिन होगा इसलिए किसीको तो वज्र गड पर जाकर मुघलों की तोपे नाकाम करना जरूरी था। फिर एक रात कुछ मराठे पुरंदर से नीचे आ गए और वज्रगड पर जाकर तोपो के आसपास के सारे मुघल सैनिकों को मौत के घाट उतारकर तोपो में किल ठोककर वापिस पुरंदर पर लौट गए। और ये सब इतनी जल्दी हुआ की जबतक सोए हुए मुघलों को पता चलता की क्या हो रहा है तबतक मराठे वज्रगड से नीचे पहुंच चुके थे। सरुल बेत नाम का मुघल सरदार मराठाओं का पीछा करके चार मराठा सैनिकों को मारने में कामयाब हो गया। लेकिन बाकी के मराठा सैनिक किले पर सहिसलामत पहुंच गए। अपने मरे हुए भाइयों के शव ले जाने के लिए मराठाओ ने अगले दिन फिर से मुघलों पर हमला किया लेकिन इस बार पासा उल्टा पड गया। मारे गए सैनिकों के शव लाने के बजाय मराठाओ के और चार सैनिक मारे गए और बहुत सारे सैनिक घायल भी हो गए। मराठे तुरंत पीछे हट गए। और किले पर भाग निकले।
मुघलों ने फिर से एक बार पुरंदर किले पर तोपे दागने का प्रयास किया इस बार पुरंदर के नीचे से ही तोपे दागने की सोची तोप गोले पुरंदर तक पहुंचे इसलिए कृत्रिम बुरुज तयार किया और उसपर अपनी तोपे चढ़ाकर पुरंदर के सफेद बूरूज को उड़ाने का प्रयास किया लेकिन मराठो ने किले के ऊपर से मुघलों ने तैयार किए बूरुज पर तोप गोले दागकर उस बुरुज को निस्तनाबुत कर दिया। अब मुघलों ने सफेद बूरूज के नीचे जमीन खोदकर उसमे बारूद भरकर सफेद बुरुज़ को उड़ाने की सोची। लेकिन मराठे मुघलों से कई ज्यादा होशियार थे। सफेद बरूज के पीछे और एक बुरूज था। जिसका नाम काला बूरूज था।
इन दोनों बुरूज़ के बिचमे मराठो ने दारू गोला जमा करके रखा था। ताकि जब मुगल सेना सफेद बूरुज को उड़ाकर किले के अंदर आए ठीक उसी वक्त इस जमा किए गए दारू गोले को आग लगा दी जाएगी। और अंदर आ चुकी मुगल सेना के चीथड़े उड जायेंगे। लेकिन मुगल सेना सफेद बुरुम को उड़ा देती उससे पहले मराठो ने रखे दारू गोले को आग लग गई। फिर एक जोरदार धमाका हुआ सफेद बुरुन ढह गया इसके साथ साथ मराठो के ८० सैनिक भी इस दुर्घटना में मारे गए। किसी को कुछ पता नहीं चल रहा था। की हुआ क्या। लेकिन इस घटना कि वजह से दिलेर खान खुश हो गया। और उसने तुरंत ही सफेद बुरून से पुरंदर किले के अंदर घुसकर पुरंदर किले की माची पर कब्जा करने की इच्छा से सफेद बुरू पर आ कर किले के अंदर दाखिल होना चाहा लेकिन मराठे काला बुरूंज पर लड़ाई के लिए तैयार थे। अब मुघलों ने अपनी तोपे सफेद बुरुंज पर लाकर काला बूरूंज पर हमला करना शुरू किया। मराठो ने लगभग छह दिनों तक काला बुरूज की रक्षा करते रहे लेकिन मुघलों के तोपगोलो की वजह से मराठा सैनिक मर रहे थे। इसलिए किलेदार मुरारबाजी देशपांडे ने अपने सैनिकों को किला छोड़कर पीछे हटा लिया। और सारी मराठा सेना बालेकिले पर जा पहुंची।
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chatrapati Shivaji Maharaj |
अब लगभग पूरा किला मुघलों ने जीत ही लिया था। बस बालेकिला पर हमला करके उसे हासिल करना था। वैसे भी राशन पानी और दारुगोले के बगैर मराठे आखिर कबतक लड़ सकेंगे? दिलेर खान ने बाले किले पर हमला करने के लिए खास सैनिकों को आगे कर दिया जिसमें पांच हजार पठान और बहलिया सैनिक थे। उधर बालेे किले में भी किलेदार मुरारबाजी देशपांडे ने भी आखरी युद्ध की तैयारी शुरू कर दी थी। मूरारबाजी ने अपने सैनिकों में से ७०० सबसे शुर सैनिको को आखरी लड़ाई के लिए तैयार किया। इन सैनिकों को बालेकीले से बाहर जाकर ५००० मुगल सैनिकों से युद्ध करना था। और अपने आखरी सांस तक लड़ना था। मुगल सेना बालेे किले की तरफ बढ़ रही थी मुरारबजी ने जैसे ही मुगल सेना को देखा बालेकीले का दरवाजा खोल दिया गया। ७०० मराठा के विरूद्ध ५००० मुगल ऐसा युद्ध होने वाला था। मराठे आगे बढ़कर मुघलों पर हमला करने लगे मुगल सेना के पठान सैनिक भी हमले के लिए तैयार थे। दिलेर खान पर अचानक से हमला करके ज्यादा से ज्यादा मुघलों को मारना मराठो का ध्येय था। मराठा सैनिक इतने आवेश में थे कि जो भी मुगल सामने आता था वो मारा जाता था। मूरारबाजी का लक्ष्य दिलेर खान था। मुरारबाजी दिलेर खान की तरफ बढ़ रहे थे। जिस भी मुगलो ने मुरारबाजी का रास्ता रोका उसका सामना मृत्यु से हुआ मुरारबाजी इतने शौर्य के साथ लड़ रहे थे। की खुद दिलेर खान अचंभित था।
चलते युद्ध के बिच में दिलेर खान ने मुरारबाजी देशपांडे को रोककर मुरारबाजी को मुघलों के साथ मिलकर काम करने को कहा
उसने कहा कि "ये बहाद्दर तुम्हारी बहादुरी देखकर में निहायत खुश हुआ हूं। तुम हमारे साथ चलो तुम्हारी शान रखेंगे।"
इसका जवाब मुरारबाजी ने बड़े ही अभिमान से कहा कि "तुझा कौल म्हणजे काय मी शिवाजी राजा चा शिपाई तूझा कौल घेतो की काय"
ये बोलकर मुरारबाजी दिलेर खान की तरफ बढ़ने लगे तभी दिलेर खान ने तीर मारकर मुरारबाजी देशपांडे की तरफ छोड़ दिया। मुरार बाजी के गर्दन को चीरकर तीर आरपार हो गया। और मुरारबाजी वीरगति प्राप्त हो गए। इस युद्ध में ३०० मराठे वीरगति प्राप्त हुए और ५०० मुगल मारे गए। बचे हुए मराठो ने मुरारबाजी का देह लेकर मराठे बाले किले पर वापिस भाग गए।
मुरारबाजी के मारे जाने के बाद दिलेर खान ने बड़े आश्चर्य के साथ कहा कि "ये कैसा सिपाही पैदा किया खुदा ने"
दो महीने होने के बावजूद एक किला मुगल जीत नहीं पा रहे थे। अगर ऐसा ही चलता रहा तो शिवाजी के सारे किले कब तक जीत पायेंगे और खुद शिवाजी कब हाथ लगेगा। ये सोचकर दिलेर खान का सिर चकरा रहा था। दिलेर खान को कुछ समझ नहीं आ रहा था। अब किले पर एक से बढ़कर एक हमला करके किला कब्जाने का दिलेर खान का मनसूबा था। अपने सैनिकों को आवेश दिलाने के लिए दिलेर खान ने अपने सर का किमौंश(पगड़ी) निकाल कर रख दिया और कहा कि
"जबतक पुरंदर किला जीत नहीं लूंगा तबतक सिर पर किमौंश नहीं पहनूंगा।"
उधर मिर्जा राजे जयसिंग और शिवाजी राजे के बीच संधि होने वाली थी। पर पुरंदर पर मुघलों का हमला और ज्यादा भयानक हो रहा था और मराठे अभि भी प्रतिकार कर रहे थे। खान के हमले में पुरंदर के ६० मराठे मारे गए लेकिन पुरंदर जीतने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी। आखिर सुलह हो गई है। किले पर हो रहे हमले रोके जाए और किले पर मौजूद लोगो को जाने दिया जाए और फिर पुरंदर कब्जे में लिया जाए यह मिर्जा राजे का संदेश काजी बेग ने दिलेर खान तक पहुंचाया। जिस लिए दिलेर खान ने इतना बड़ा युद्ध लड़ा ताकि पुरंदर जीत पाए वह सपना अधूरा ही रह गया। हमला रोका गया और मराठाओं के लोगो ने किले पर शिवाजी महाराज का संदेश दिया कि किला छोड़ दिया जाए और सहिसलामत किले से नीचे आ जाए। अपना कर्तव्य आखरी सांस तक लड़ने का प्रण लिए हुए मराठो ने शिवाजी महाराज के आदेश को मानते हुए पुरंदर से नीचे आ गए और आखिर पुरंदर की लड़ाई खत्म हो गई।
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