जानिए छत्रपति संभाजी महाराज के पकड़े जाने की कहानी

छत्रपति संभाजी महाराज के पकड़े जाने की कहानी

भारत के इतिहास में छत्रपति संभाजी महाराज इकलौते ऐसे राजा थे जो अपनी जिंदगी में कभी भी किसी भी युद्ध को हारे नहीं थे। संभाजी महाराज मरते दम तक अजिंक्य बने रहे। छत्रपति संभाजी महाराज के वीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की संभाजी महाराज को पकड़ने के लिए बादशाह औरंगजेब ने दो लाख का सैन्य भेजा था।

छत्रपति संभाजी महाराज के पकड़े जाने की कहानी
Sambhaji maharaj image

लेकिन संभाजी महाराज की दहशत दुश्मनों में कुछ इस कदर थी कि पूरे मुगल सैन्य से घेरे जाने के बावजूद किसी मुगल सरदार या सैनिक की संभाजी महराज के पास जाकर हटकड़ी लगाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। बडी मशक्कत के बाद संभाजी महाराज को कैद कर लिया गया। लेकिन मुगल सेना इतनी डरी हुई थी कि संगमेश्वर से बहादुरगढ़ का अंतर सिर्फ २ दिनों दिनों में पूरा किया। उन्हे पता था कि अगर मराठा ओ को पता चला कि मुघलों ने उनके राजा को कैद कर लिया गया है तो स्वराज्य की सारी सीमाएं बंद हो जाती और स्वराज्य के सीमा के अंदर जो भी मुगल है उसकी मौत निश्चित थी। बहादुरगढ़ पहुंचने तक मुकर्रब खान के जान में जान नहीं थी वो बेहद डरा हुआ था कैसे भी करके मराठाओं की पहुंच से दूर जल्द से जल्द पहुंचना चाहता था।

संभाजी महाराज के कैद किये जाने की खबर औरंगजेब तक पहुंचाई गई। तब औरंगजेब बेहद खुश हुआ क्योंकि दख्खन पर विजय हासिल करना औरंगजेब का सपना था लेकिन यह सब करने के लिए मुघलों के रास्ते का बस एक कि काटा था। जो कि संभाजी महाराज थे। उनके होते हुए दख्खन पर विजय हासिल करना मुघलों के लिए नामुमकिन था। इसलिए जब मुगल बादशाह औरंगजेब को यह खबर मिली तो उसने जशन की घोषणा की यह दिन उसके लिए किसी ईद से कम नहीं था। पूरे शहर में जश्न का माहौल था। सब लोक संभाजी को देखना चाहते थे। लोग देखना चाहते थे कि आखिर वो संभाजी दिखता कैसा है जिसने पूरी मुगल सल्तनत के नाक में दम कर रखा है।  संभाजी महाराज को कैद करने के बाद औरंगजेब के दरबार में पेश किया गया। उस वक्त संभाजी महाराज के साथ साथ उनके सबसे करीबी दोस्त कवि कलश को भी पेश किय गया।

इस बीच स्वराज्य में वक्त रहते किसी को पता ही नहीं चला कि संभाजी महाराज को मुगल सेना ने कैद कर लिया है। या यूं कहे की किसी को पता ना चले इसकी पूरी खबरदारी ली गई थी। मुघलों के लिए भी यह लगभग नामुमकिन था। क्योंकि संभाजी महाराज को पकड़ने की पहले ही मुगल दो बार कोशिश कर चुके थे लेकिन मुघलों के नाक के नीचे से संभाजी महाराज हर बार बच निकलते थे। वो कहावत होती है ना ' घर का भेदी लंका ढाए ' वही याहपर भी हुआ संभाजी महाराज के साले गणोजी शिर्के को शंभाजी महाराज के पिता छत्रपति शिवाजी महाराज ने वतन(जहागीरी/ज़मीनदारी) देने का वचन दिया था।

 लेकिन संभाजी महराज ने सत्ता पर आते ही वतन दारी ख़तम कर दी। इस बात पर संभाजी महाराज के साले संभाजी महाराज पर काफी नाराज थे वो किसी भी तरह इसका बदला लेना चाहते थे। मुघलों ने यही संधी साधकर गणोजी शिर्के से हाथ मिला लिया और संभाजी महाराज के बदले बड़ी जमीनदारी देने का वादा किया। संभाजी महाराज से बदला लेने के लिए और वतन पाने के लिए गणोजी शिर्के ने स्वराज्य से गद्दारी करते हुए संभाजी महाराज को पकड़वा दिया। इस शडयंत्र में गणोजी शिर्के के साथ प्रल्हाद निराजी, मानाजी मोरे, येसाजी और सिरोजी फजर्द (हिरोजी फर्जद के भाई) ने भी मदद कि थी।

संभाजी महाराज को तुलापुर ले जाने के बाद स्वराज्य में खबर फैल गई की छत्रपति संभाजी महाराज को मुघलों द्वारा कैद कर लिया गया है। उसके बाद स्वराज्य में भूकंप सा आ गया। स्वराज्य के पालनहार छत्रपति मुघलों द्वारा कैद हो चुका था । लेकिन फिर भी हार ना मानते हुए मराठाओं ने संभाजी महाराज को छुड़वाने की हर संभव कोशिश की लेकिन फिर भी नाकामियाब रहे।

वहा औरंगजेब के दरबार में औरंगजेब ने संभाजी महाराज को स्वराज्य के बदले जीवनदान देने की पेशकश की और मुसलमान बनने को कहा लेकिन संभाजी महाराज को हिन्दू धर्म के प्रति बहुत तेज लगाव था वो कदापि यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं कर सकते थे और उन्होंने यही किया औरंगजेब के प्रस्ताव को बड़े अभिमान से अस्वीकार किया। यह बात औरंगजेब के दिल को लग गई और संभाजी महाराज को बेहद क्रूर सजा सुनाई गई। सजा थी आंखे निकालने की, चमड़ी उधेड़ने की, जबान काटने की, और मरते दम तक हर वो यातना देने की की जो संभव है। लगभग चालीस दिनों तक संभाजी महाराज पर अगणित आत्याचार होते रहे लेकिन संभाजी महाराज ने स्वराज्य की ओर निष्ठा दिखाते हुए किसी भी जानकारी को साझा करने से और औरंगजेब के सामने  शरण आने से साफ इंकार किया ।

संभाजी महाराज के अपने धर्म के प्रति इसी लगाव के कारण उन्हें धर्मवीर कहा जाता है। मराठी में इस प्रसंग के ऊपर काफी कविताएं लिखी जा चुकी है।

चालीस दिनों के घनघोर अत्याचार के बाद आखिर ११ मार्च १६८९ के दिन ३२ वर्ष की आयु में संभाजी महाराज का दुखत निधन हो गया। अपने पीछे पत्नी येसुबाई को अकेला छोड़कर चल बसे। मराठाओं के इतिहास की सबसे डरावनी और विचलित कर देने वाली हत्या थी। औरंगजेब को लगा कि संभाजी महाराज के बाद अब स्वराज्य की रक्षा करने के लिए कोई अहम नेतृत्व नहीं रहा और अब स्वराज्य को आसानी से हासिल करके मुगल सल्तनत में शामिल किया जा सकता है लेकिन संभाजी महाराज के हत्या के बाद दख्खन में एक तूफान सा आ गया।

संभाजी महाराज के गुजरने के बाद महारानी ताराबाई ने और उनके पुत्र संभाजी महाराज के छोटे भाई राजाराम महाराज ने छोटी उमर में छत्रपति की गद्दी संभाली और मुघलों के हर एक आक्रमण को मुहतोड़ जवाब दिया। फिर राजाराम महाराज ने स्वराज्य के तीसरे छत्रपति के रूप में शपथ ली और स्वराज्य को बेहद अच्छी तरह से संभाला। और  आखिर में औरंगजेब का दख्खन को काबिज करने का सपना सपना ही रह गया। ओर मराठो की सत्ता फलती फूलती रही। फिर संभाजी महाराज के बाद छत्रपति की गद्दी उन्ही के छोटे भाई राजाराम महाराज ने संभाली और छत्रपति बनकर स्वराज्य को मुघलों के हर एक हमले से बचाए रखा।

अब संभाजी महाराज की समाधी २ अलग अलग जगह पर है। तुलापुर और वढू बुद्रुक इन दोनों गांव में इसकी एक अलग ही कहानी है।

टिप्पणियाँ

  1. जय संभाजी🚩🚩🙏

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  2. Veer sambhaji maharaj ne ye apne hindu bhaiyo ke liye apne Jeevan ka balidaan kar liya veer mahaparakrami sambhaji maharaj amar rahe aap ka ye balidaan na bhulega hindusthan aaj hamare hindu bhai ek nahi hai wo samay me hindu ke liye apne dharm ke liye maharaj ne apni jaan de di aur aaj hamare bhai log alag alag jati ka naam lekar bantey huye hai hinduo ko ek hona padega jis din hindu ek ho jayega us din ye desh hindurastra banega

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