पुरंदर किला संभाजी महाराज का जन्मस्थान | purandar kila

पुरंदर किला संभाजी महाराज का जन्मस्थान

पुरंदर किला पुणे से ४० किमी दूर नारायणपुर गांव के पास स्थित है। नारायणपुर गांव के पास प्रतीबालाजी का मंदिर भी है जो कि बेहद सुंदर और आकर्षक है। नारायणपुर गांव त्रीमुखी दत्त मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। नारायणपुर से २ किमी दूर ऊंची पहाड़ी पर पुरंदर किला स्थित है। पुरंदर किला छत्रपति शिवाजी महाराज और मिर्जा राजे जयसिंह के बीच हुए सुलह की वजह से इतिहास में प्रसिद्ध है। लेकिन इससे भी ज्यादा यह किला भारत के और महाराष्ट्र के इतिहास बेहद महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध हुआ क्योंकि स्वराज्य के दूसरे छत्रपति श्री छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म इसी किले पर हुआ था।

Purandar fort information
Purandar fort


संभाजी महाराज को स्वराज्य के दूसरे छत्रपति होने के साथ साथ बेहद काबिल और यशस्वी राजा के तौर पर जाना जाता है। इनके शासनकाल में स्वराज्य ना केवल बढ़ा बल्कि एक वक्त तो ऐसा आया कि जो मुगल पूरे भारत पर अपना अधिकार जमाना चाहते थे उन मुघलों में भी संभाजी महाराज का भय इतना बढ़ा कि कोई भी मुगल सरदार स्वराज्य पर हमला करने के से पहले सौ बार सोचता। और हमला कर भी देता तो आखिर में या तो हार जाता या मारा जाता। बहुत समय तक पुरंदर किले ने स्वराज्य की राजधानी की भूमिका भी निभाई है। इस किले पर स्वराज्य की कुछ महत्वपूर्ण लढाईया भी हुई है।

आज के समय में पुरंदर किला कुछ अच्छी हालत में तो नहीं है लेकिन इस किले के कई दरवाजे और तटबंदिया अभी भी काफी अच्छे से टिकी हुई है। इस किले के भौगोलिक स्थान को देखते हुए भारत के आर्मी ने इस किले को कैंप के रूप में बदल दिया है। लेकिन फिर भी इस किले पर घूमने के लिए कोई पाबंदी नहीं है। लेकिन आपको पुरंदर किले पर प्रवेश करना है तो आपके पास अपना आइडेंटिटी कार्ड होना चाहिए यह अनिवार्य है। जैसे कि आधार कार्ड, पैन कार्ड।

आप किले पर शाम पांच बजे तक किसी भी दिन घूम सकते है बस शर्त है कि आप आर्मी के किसी भी सैनिक या फिर इमारत की फोटो या वीडियो नहीं निकालेंगे। किलेपर टूव्हीलर फोरवीलर की पार्किंग की व्यवस्था है। पीने के पानी के साथ साथ अच्छे खाने कि व्यवस्था किले के पार्किंग के पास है। पार्किंग से किले के उपरी चोर तक जाने के लिए आप को बस एक घंटे की चढाई का सफर तय करना होगा और उसके बाद आप किले के सबसे ऊंची जगह केदारेश्वर मंदिर के पास पहुंच जाएंगे। यह मंदिर किले की सबसे ऊंची जगह है।

पुरंदर किले तक कैसे पहुंचे ?

पुरंदर किला पुणे शहर से ४० km दूर है। पुणे से नारायणपुर तक बस की सुविधा उपलब्ध है अगर आप पुणे से काफी ज्यादा दूर रहते है तो आप पुणे तक बस ,ट्रेन,याफिर हवाई रास्ते के जरिये आ सकते है। और उसके बाद बस से यात्रा करके पुरंदर किले के नीचे मौजूद नारायण गांव तक पहुंच सकते है। या फिर अगर आप कैब या फिर अपनी खुद कि गाड़ी से जाते है तो आप किले के ऊपर पार्किंग तक गाड़ी से जा सकते है। और वहासे सीधा किले पर चढ़ाई कर सकते है। लेकिन एक बाद याद रखिए आगर आपके पास कोई पहचान पत्र नहीं है तो आपको किले पर जाने की अनुमति नहीं मिल सकती। इसलिए कमसे कम आधार कार्ड तो पास रखिए ही।

पुरंदर किले कि वास्तु

किले के दरवाजे

बिनी दरवाजा

बिनी दरवाजा पुरंदर किले का सबसे पहला दरवाजा है जो किले पर चढाई करते वक्त दिखाई देता है।

गणेश दरवाजा

गणेश दरवाजे के पास भगवान हनुमान का छोटासा मंदिर है। जो दरवाजे के बिल्कुल पास ही है। लगभग हर एक किले पर आपको गणेश दरवाजा के नाम से दरवाजा मिल ही जाएगा ऐसा इस किल पर भी है।

दिल्ली दरवाजा
सर दरवाजा

सर दरवाजा पुरंदर किले के बालेकिले का अकेला दरवाजा है। जहासे बालेकिले पर जाया जा सकता है। अगर किसी को बालेकिले तक जाना है तो इस सर दरवाजे से होकर है ही जाना होता है।

किले के बूरुज़

  • सफेद बुरज
  • काला बुरुज

किले पर कुएं

पुरंदर किले पर ३-४ कुएं है जो पुराने समय में किले कि जल आपूर्ति को पूरा किया करते थे। अभी भी इन कुओ में पानी है लेकिन मेरी सलाह ये है कि यह पानी ना पिए आप अच्छा बोतल का पानी ही पिये।

केदारेश्वर मंदिर

पुरंदर किले पर  किले कि सबसे ऊंची जगह पर केदारेश्वर मंदिर है। यह मंदिर किले के निर्माण के समय से ही इस किले पर मौजूद है। इस मंदिर में प्राचीन शिवलिंग है जिसकी पूजा करने के लिए हजारों भाविक हर साल यहां आते रहते है।

Kedareshwar Mandir stairs purandar fort information
Kedareshwar Mandir on purandar fort

चर्च

पुरंदर किले पर २ चर्च भी दिखाई पड़ते है। मेरे खयाल से ये चर्च ब्रिटिश काल में बनाए गए होंगे। ताकि ब्रिटिश अधिकारियों की ईश्वर साधना हो सके।

Purandar-fort-information charch
Charch on purandar fort


आर्मी फायरिंग रेंज

पुरंदर किले की यह बिल्कुल ही अलग साइड है। जैसे कि किले पर भारतीय सुरक्षा बल की मौजूदगी है तो जाहिर है सुरक्षा बल की पूरी व्यवस्था किले पर ही होगी। जिसमें रहने कि व्यवस्था, सुरक्षा बल के ट्रेनिंग की जगह जैसी जगह के लिए पुरंदर किले के कुछ हिस्से हो आरक्षित किया गया है। पुरंदर पर ऐसी जगह पर आम लोग नही जा सकते ऐसा करना बिल्कुल मना है। अगर किसी व्यक्ति को नियम तोडते हुए पकड़ा जाता है तो उसपे कानूनी कार्रवाई होगी। लेकिन आप आर्मी के बहुत से स्ट्रक्चर दूर से देख सकते है। और अगर आपकी किस्मत अच्छी रही तो आप गोलियों कि आवाज भी सुन सकते है। यह आवाजे ट्रेनिंग के वक्त सुनाई देती है।

राजमहल के अवशेष

पुरंदर किले पर ऊपर जाते ही आपको दाई बाजू में राजमहल की इमारत के अवशेष मिलेंगे। आज के समय में यह इमारत खंडहर में तब्दील हो गई है लेकिन इसकी रचना को देखा जाए तो यह प्रतीत होता है कि उस समय बेहद ही खूबसूरत महल हुआ करता होगा।

पुरंदर किले का इतिहास

उपलब्ध साधनों के अनुसार पुरंदर किले का निर्माण किसने करवाया इसका प्रमाण तो नहीं मिल पाता है लेकिन तेरावी शताब्दी में इस किले का पुर्ननिर्माण कराया गया। इसके बाद निजामशाह, आदिलशाह ने इस किले पर राज किया फिर सोलावी शताब्दी में शिवाजी महाराज ने उन्नीस साल कि उमर में पुरंदर किला जीत लिया यही से स्वराज्य के कल्पना के वास्तविता बनने की शुरुवात हुई।

छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म

छत्रपति शिवाजी महाराज और महारानी सईबाई को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। तब महारानी सईबाई पुरंदर किले पर ही थी। युवराज का नाम रखा गया संभाजी शिवाजी महाराज के बड़े भाई संभाजी राजे की याद में शिवाजी महाराज ने अपने बेटे का नाम भी संभाजी रखा। बाद में आगे जाकर इन्होंने ही स्वराज्य की गद्दी संभाली और इतनी अच्छी तरह संभाली की  संभाजी महाराज के शासनकाल में स्वराज्य अच्छी तरह से फलफुल रहा था। और स्वराज्य की जनता बेहद खुश थी। एक तरह से रामराज्य ही था।

जिन्हें मराठा साम्राज्य (स्वराज्य) के दूसरे छत्रपति छत्रपति संभाजी महाराज के नाम से जाना जाता है। संभाजी महाराज जिन्हें धर्मवीर की उपाधि भी दी जाती है। संभाजी महाराज का जन्म १४ मई १६५७ के दिन पुरंदर किले पर हुआ था। संभाजी महाराज छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र थे। उनके बाद राजाराम महाराज संभाजी महाराज से काफी छोटे थे। संभाजी महाराज का ज्यादातर बचपन आपने माता पिता से दूर ही गुजरा है। अपने जन्म के बाद काफी कम आयु में संभाजी महाराज ने अपनी माता येसुबाई को खो दिया और पिता छत्रपति शिवाजी महाराज हमेशा स्वराज्य को बचाने के लिए मोहिम पर रहते थे। लेनिक संभाजी महाराज की दादी राजमाता जीजाबाई ने संभाजी महाराज को बेहद लाड प्यार से पाला के कभी मातापिता की कमी महसूस नहीं होने दी। और उन्होंने है संभाजी महाराज को प्राथमिक शिक्षण दिया।

संभाजी महाराज को बचपन से ही राजनीति, युद्ध, और ऐसे ही कई कलाए सिखाई गई। उनको हर एक जरूरी विद्या से अवगत कराया गया। ताकि आगे जाकर वह शिवाजी महाराज के बाद छत्रपति की गद्दी संभाल सके। संभाजी महाराज सब कुछ बेहद तेजी से सीखते थे। उन्होने संस्कृत,फारसी,उर्दू,तमिल,कन्नड़, जैसी लगभग १५ भाषाओं पर पकड़ हासिल कि थी। ९ साल की बेहद कम उमर में बुधभूषण नाम का संस्कृत ग्रंथ लिखा। राजनीति में भी तल्लख थे। ८ साल की उम्र से ही राजनीति म सक्रिय सहभाग लिए था। सिर्फ साढ़े आंठ साल के होते हुए संभाजी महाराज अपने पिता के साथ औरंगजेब से मिलने आगरा भी गए थे। वहापर भी अपने व्यक्तिमत्व द्वारा सबके दिल पर अपनी छाप छोड़ी थी।

पुरंदर का युद्ध

इस पुरंदर की लड़ाई से पहले शिवाजी महाराज ने सूरत शहर पर छापा मारकर सूरत शहर की लूट की क्योंकि शिवाजी महाराज औरंगजेब को जताना चाहते थे कि स्वराज्य कोई कमजोर राज्य नहीं है। अगर औरंगजेब इसी तरह से स्वराज्य पर हमला जारी रखा तो स्वराज्य की ओर से कड़ा जवाब मिलेगा। लेकिन सूरत के छापे के बाद औरंगजेब बहुत गुस्सा हुआ और स्वराज्य के खिलाफ और शिवाजी महाराज के खिलाफ बहुत बड़ा युद्ध करने की तैयारी उसने शुरू कि यह सब हो रहा था १५५९ के जनवरी महीने में लगभग तीन महीने की तैयारी के बाद मार्च महीने में औरंगजेब ने मिर्जा राजे जयसिंग को दख्खन में स्वराज्य पर हमला करने के लिए भेजा और उसकी मदत करने के लिए उसके साथ दिलेरखन जैसा नामी सरदार भी इस मुहिम में शामिल हुआ था। यह युद्ध बहुत भयंकर हुआ था।

Muraraji deshpande statue on purandar fortmuraraji deshpande


छत्रपति शिवाजी महाराज और मिर्जाराजे जयसिंग के बीच हुई संधि

छत्रपति शिवाजी महाराज और मिर्जा राजे जयसिंग के बीच एक संधि हुई जिसके तहत शिवाजी महाराज स्वराज्य के लगभग छत्तीस किले मुघलों को सौंपने वाले थे यह सुलह पुरंदर किले के लिए हुई थी इस लिए इसे पुरंदर की संधि (पुरंदर चा तह) के नाम से जाना जाता है। लेकिन बाद में इन किलो को कम किया गया और २३ किले मुघलों को देने की संधि हुई।

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