रायगढ़ किला,इतिहास के बारे मे जानकारी | raygad kila itihas

रायगड किला,इतिहास

महाड से २५ km दूर यह किला हिंदवी स्वराज्य और मराठा इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण किला है। रायगढ़ किला स्वतंत्र स्वराज्य की पहली राजधानी है। इस किले का छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा पुनर्निर्माण कराया गया। तब जाकर इस किले का नाम रायगढ़ हुआ। रायगढ़ किला मुंबई,पुणे और सातारा से सामान दूरी पर है। उसके अलावा ये किला डेक्कन पठार और तटीय महाराष्ट्र के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है। रायगढ़ छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा निर्मित स्वराज्य की पहली राजधानी है। 


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Raigad fort


रायगढ़ अच्छी तरह से पहाड़ों से घिरा हुआ है। किला अपने उत्तर और पूर्व से काल नदी से घिरा हुआ है। युद्ध के लिहाज से काफी मजबूत यह किला अपने समय में काफी सुरक्षित माना जाता था। अगर आसमान साफ है तो पूर्व में राजगढ़, तोरना और दक्षिण में प्रतापगढ़ वासोटा और मकरंदगढ देख सकते है। शिवाजी महाराज के द्वारा किले को जीतने  से पहले इसे रायरी के पहाड़ी के नाम से जाना जाता था। अपनी अभेत्यता के कारण रायगढ़ को पूर्व का जिब्राल्टर कहा जाता था। सोलवी शताब्दी में जब इसे किले के रूप में विकसित नहीं किया गया था तब इसे स्थानीय लोगो द्वारा रशिवता और तनास कहा जाता था। किले को अलग अलग समय में अलग अलग १५ नामों से जाना जाता था। 

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किले का इस्तेमाल शुरू में निजामशाही शासन में कैदियों को रखने के लिए किया जाता था। इसके बाद जावली के मोरे का शासन आया। ६ अप्रैल १६५६  को शिवाजी महाराज ने रायरी के मोरे का पराभव करते हुए मई में कब्जा कर लिया। कल्याण का तत्कालीन सूबेदार आदिलशाह के खजाने को वीजापुर ले जा रहा था। जिसपर मराठो ने छापा मार कर  उसका इस्तेमाल किले को मजबूत करने के लिए किया गया था। शिवाजी महाराज ने रायगढ़ को स्वराज्य की पहली राजधानी के रूप में चयन कैसे किया इसका वर्णन शनशाद बखर में किया गया है। 

रायगढ़ किले पर कैसे पहुंचे

रेल्वे

अगर आप रेल्वे से अपना सफर तय करने वाले है तो हम आपको बता दे की रेल्वे महड़ तक ही जाती है। उसके बाद आपको बाकी का सफर बस, कब के जरिए पूरा करना पड़ेगा। जो कि २५ km का रास्ता है। रेल रास्ते से आपको काफी लुभावने नजारे देखने को मिलेंगे

विमान

अगर आप विमान से रायगढ़ जाना चाहते है तो आपको मुंबई या फिर पुणे की टिकट बुक करनी पड़ेगी और वहा से बस, ट्रेन, या फिर कैब के जरिए बाकी का सफर पूरा करना होगा।

सड़क मार्ग

सफर के लिए सड़क मार्ग सबसे बेहतरीन रहेगा। आप जैसे चाहे जिस रास्ते से चाहे वैसे अपनी मर्जी से का सकते है। सड़क मार्ग से आप बस, कैब या अपनी प्राइवेट गाड़ी से जा सकते है।

रायगढ़ किले के मुख्य आकर्षण

किले के दरवाजे

  • महा दरवाजा
  • नागर्चना दरवाजा
  • पालखी दरवाजा
  • मेना दरवाजा
  • वाघ दरवाजा

किले पर मौजूद तालाब 

  • गंगा सागर
  • कुशावर्त तालाब

बाजार पेठ

 रायगड किला काफी बडा इस कारण किले पर एक बाजार पेठ भी थी। आज भी उस बाजारपेठ के अवशेष देखे जा सकते हैं।

हिरकणी टोक

हिरकणी की कथा महाराष्ट्र मे काफी प्रचलित है। हिरकणी किले पर दुध पहुचाने आती थी। पर किसी कारण वह शाम होने से पहले किले से बाहर नहीं निकल पाई और अगर एक बार किले का दरवाजा बंद हो जाता है तो दुसरे दिन सुबह ही वह दरवाजा खुलता है। पर हिरकणी अपने नन्हे बच्चे को घर पर ही छोड आयी थी। उसे कुछ भी करके अपने घर बच्चे के पास पहुंचना था। इसलिए अपनी जान जोखिम मे डालकर बेहद खतरनाक रास्ते से होकर वह किले से नीचे उतरी!

रायरेश्वर का मंदिर

किले पर मौजूद रायारेश्वर मंदिर किले के मुख्य आकर्षणों में से एक है। यह मंदिर भगवान शिवशंकर को समर्पत है। इन्हीं के नाम पर किले कि पहाड़ी को रायरी के नाम से जाना जाता था।

शिवाजी महाराज की समाधी

३ अप्रैल १६८० को रायगढ़ पर जब छत्रपति शिवाजी महाराज का निधन हुआ  उनके निधन के बाद शिवाजी महाराज की समाधी इसी किले पर बनाई गई। ये समाधिस्थल आज भी बेहद अच्छी अवस्था में मौजूद है। और देखने लायक है। इसी समाधी के सामने शिवाजी महाराज के पालतू कुत्ते की मूर्ति थी पर कुछ सालो पहले कुछ समाजकंठको ने इसे तोड़ दिया।


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Chatrapati Shivaji Maharaj samadhi

किले के अभियंता के नाम की पायरी

शिवाजी महाराज ने किले के पुनर्निर्माण का कार्य स्वराज्य के मशहूर स्थापत्य विशारद हिरोजी इंदुलकर को सोपा था। जब किला बनकर तैयार हुआ। और महाराज ने जब किला देखा तो वह बेहद खुश हुए और उन्होंने हिरोजी इंदुलकर से कुछ भी मांगना चाहते है वो मांगने को कहा हिरोजी इंदुलकर ने को मांगा वो बहुत ही चौकाने वाला था। उन्होंने शिवाजी महराज से कहा कि उन्हें कुछ भी नहीं चाहिए बस मेरे नाम की एक इट इस किले के सीढ़ी में चाहिए। ताकि जब भी आप किले पर आए तो आपके पैर की धूल मेरे नाम की सीढ़ी पर पड़े बस यही मेरे लिए सबकुछ होगा। और जब आप किले पर जाओगे तब आपको किले कि सीढ़ी पर हिरोजी इंदुलकर  के नाम की पायरी देखने को मिलेगी।

टकमक टोक

जिसे भी मृत्युदंड के लिए दंडित किया जाता था उसे इस तकमक टोक से नीचे फेंक दिया जाता था। बहुत से लोगो को यहां से फेंककर मार दिया गया है। यहां से दिखने वाला नजारा काफी लुभावना है।

रायगढ़ का इतिहास

रायगढ़ का प्राचीन नाम रायरी था। यूरोपीय लोग इसे पूर्व का जिब्राल्टर कहते थे जिब्राल्टर का थाना उतना ही मजबूत था जितना कि रायगढ़ हैै ।  जब इसे किले के रूप में विकसित नहीं किया गया था तब इसे स्थानीय लोगो द्वारा रशिवता और तनास कहा जाता था। इसकी ऊंचाई और चारो ओर गहरी खाई होने की वजह से इसे नंदादीप के नाम से भी जाना जाता था। निजामशाही में रायगढ़ का  उपयोग कैदियों को रखने के लिए किया जाता था। जब शिवाजी महाराज ने रायरी पर हमला किया तो रायरी के यशवंतराव मोरे जावली छोड़कर भाग गए। और रायगढ़ पर रहने लगे जबकि प्रतापराव मोरे वीजापुर भाग गए।

शिवाजी महाराज ने ६ अप्रैल १६५६ को रायगढ़ की घेराबंदी की ओर मई के महीने में रायगढ़ पर जीत हासिल की। और ऐसे ही रायरी महाराज के कब्जे में आ गया। कल्याण के सूबेदार जब आदिलशाह का खजाना वीजापुर ले जा रहे थे। तब उसके काफिले पर हमला करके जो खजाना जप्त कर लिया गया उस खजाने से रायगढ़ का पुनर्निर्माण किया गया। राजधानी बनाने के लिए रायगढ़ का माथा सुविधाजनक और पर्याप्त है;ये उस क्षेत्र का सबसे कठिन स्थान है। यह किला समुद्री परिवहन के नजदीक भी है। इसलिए महाराज ने रायगढ़ को राजधानी के लिए चुना। किले पर कई कुएं और झीलें मौजूद है सभी यवनों की जीतने के बाद राजा शिवाजी महराज ने रायगड़ को अपनी राजधानी बनाई और प्रजा की इच्छाओं को पूरा करते हुए दुनिया में सबसे बड़ी सफलता हासिल की।

४ फरवरी १६७५ को आनंद संवत्सर माघ महीने में युवराज संभाजी की मुंज इसी रायगढ़ पर हुई। लेकिन रायगढ़ की सबसे दूखद घटना ३ अप्रैल १६८० के दिन हुई जब छत्रपति शिवाजी महाराज का निधन हुआ। सदस्य बखर कहते है कि उस दिन धरती काप उठीं थी, आठो दिशाओं में आग लग गई,श्री शंभू महादेव की झील का रंग खून के लाल रंग का हो गया। छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन के बाद १६८४ के सितंबर में ओरंगजेब ने रायगढ़ अभियान शुरू किया बादशहा ने अपने शुर सरदार शहाबुद्दीन खान को ४००००  के फौज के साथ रायगढ़ पर आक्रमण करने के लिए भेजा।

शहाबुद्दीन ने किले के नीचे के गाव में आग लगा दी। और लूटपाट शुरू कर दी लेकिन रायगढ़ पर हमला किए बिना वो ५ मार्च को वापस लौट गया। ओरंगजेब ने अपने वजीर असद खान के पुत्र जुल्फिकार खान को रायगढ़ पर हमला करने हेतु भेजा। खान ने इस किले की घेराबंदी कर दी। उसवक्त किले पर संभाजी महाराज थे  खान ने आठ महीने तक घेराबंदी कि पर इसी बीच संभाजी महाराज रायगढ़ से निकलकर प्रतापगढ़ पहुंच चुके थे। लेकिन ३ नवम्बर १६७९ को सूर्याजी  पिसाल के एक  किलेदार की गद्दारी की सहायता से मुघलों ने किले को  जीत लिया। खान ने उसे वाई कि देशमखि देने का लालच दिखाकर  उससे गद्दारी करवाई। जुल्फिकार खान बादशहा आेरांगजेब द्वारा इतायत खान को दिया हुआ किताब है।  बाद में किले का नाम बदलकर इस्लामगड कर दिया। लेकिन ५ जून को शाहू महाराज के शासन काल में मराठो ने किलो को फिरसे हासिल कर जीत लिया। 

शिव राज्याभिषेक

शिवराज्याभिषेक रायगढ़ द्वारा अनुभव किया गया सबसे सुनहरा अवसर है। शिवाजी महाराज का अभिषेक ना सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि भारत के इतिहास की बहुत महत्वपूर्ण घटना है। १९ मई १६७४ के दिन राज्याभिषेक से पहले शिवाजी महाराज ने प्रतापगढ़ पर भवानी माता को तीन मन सोने की छतरी चढ़ाई। ६ जून १६७६  शनिवार के सुभ अवसर पर शिवाजी महराज का राज्याभिषेक रायगढ़ पर संपन्न हुआ। २४ सितंबर १६८४ के दिन शिवाजी महराज ने खुदका दूसरा राज्याभिषेक कराया इसके पीछे का असली मकसद ज्यादा से ज्यादा लोगो का समाधान करना था। ये राज्याभिषेक निष्चलपुरी गोसवी के हातो संपन्न हुआ। कविभूषण रायगढ़ का वर्णन करते हैं।
शिवाजी ने सभी किलो का आधार और विलासस्थान ऐसे रायगढ़ किले को अपना निवास चुना। ये किला इतना प्रचंड है कि इसमें तीनों लोको की महिमा समाई हुई है।

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