होली क्यू मनाई जाती हैं? होली की कहानी | holi kyo manayi jaati hai

होली क्यू मनाई जाती हैं? और उसके पिछे की कहानी

 तो इसके पिछे एक बहुत बडी कहानी जुडी हुई हैं। जो की हिंदू पुरान और भागवत के अनुसार सच साबित होती है। जहासी से लगभग 80 किलोमीटर दूर हिरजनगर हैं, मान्यता हैं यह सदियुग में राक्षस राजहिरन नामक राज्य की राजधानी हुआ करती थी। वो राक्षस बहुत ही क्रुर हुआ करता था। और भय के कारण लोगो का जिना मुश्कील कर दिया था। हिरन्यकशप ने घोर तपस्या करके भगवान ब्रम्हा से वरदान लिया था। की वो ना ही रात में मरे, ना दिन में, ना उसे नर मार पाये, ना नारी, पशू मार पाये, ना पक्षी, ना देवता मार पाये, ना राक्षस, ना कोई अस्त्र मार पाये, ना सस्त्र काई भी उसकी मृत्यू ना कर पाये।

Holi colours in hand
Photo by Debashis Biswas on Unsplash

जब भगवान ब्रम्हा ने उसे वरदान दे दिया तो उसने संपूर्ण राज्य में घोषण की, अबसे " भगवान विष्णू" की नहीं बल्की उसकी पूजा होगी,और जो उसकी पूजा नहीं करेगा उसको मृत्युदंड मिलेगा, मृत्युदंड के डर से सारे लोग उसकी पूजा करने लगे। पर उसका स्वय: पुत्र प्रल्हाद भगवान विष्णू का भक्त निकला, उसने अपने पिता की पूजा करने से इन्कार कर दिया। जिसे नाराज होकर हिरन्यकशप ने उसे कई बार मारने की कोशिश की, लेकीन भगवान विष्णू की कृपा से वो हर बार बच गया।

हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने के कई उपाय किये। उसने प्रल्हाद को मारने के लिये सापो के तहखाने में बंद किया, तो कभी हाथी के पैरो से कुचलने का प्रयास,जब वो असफल रहा, तो उसने अपने सैनिको को प्रल्हाद को, बेकाचल पर्वत से नीचे फेकने का आदेश दे दिया। सैनिको से प्रल्हाद को नीचे बेतवा नदी में फेक दिया। लेकीन भगवान विष्णू ने खुद अपनी गोद में बिठाकर बचा लिया।

जब हिरन्यकश्यप भक्त प्रल्हाद को मारने में असफल रहा, तो हिरन्यकश्यप की बहन होलिका ने कहा की उसे वरदान हैं, की वो आग में न जल सकेगी, और वो प्रल्हाद को लेकर आग में बैठ जायेगी, जिसे प्रल्हाद आग में जलकर मर जाएगा। येरज में लकडीयो का ठेर बनाया गया, जिसमे वो प्रल्हाद को गोदी में बैठाकर बैठ गयी, और आग लगा दि गयी, लेकीन एक बार फिर भगवान विष्णू की कृपा से, भक्त प्रल्हाद बच गया, और होलिका वहा पर जल गयी। तबसे होली का दहन किया जाने लगा। 

जब हिरन्यकश्यप ने प्रल्हाद को मारने की कोशिश की, तब भगवान विष्णू ने नरसिंह का अवतार लिया,जो की सिंह और नर का अवतार था, और अपने नखूनोसे हिरनकशब का वध कर दिया। तब पहिली बार जहासी में रंग गुलाल के साथ, होली का त्योहर मनाया गया। 

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