छह सालो तक मुगलों को टक्कर देने वाला किला रामसेज
रामसेज का किला भारत के और उससे भी महाराष्ट्र के इतिहास में एक अलग ही अध्याय लिए हुए हैं। मराठो का यह रामसेज किला ऐसा किला है कि जो बेहद छोटा और रणनीती के लिए इतना महत्वपूर्ण भी नहीं हुआ करता था। लेकिन जब औरंगजेब ने मराठा साम्राज्य (स्वराज्य) पर हमला किया तो उस दौर में इस किले को काफी अहमियत मिली। इस किले को मराठी मे रामसेज किल्ला भी कहा जाता है।
Ramshej fort map
नाशिक पेठ रस्ते पर पंचवटी से मात्र १० किमी दूर यह किला और किलों की तरह ज्यादा ऊंचाई पर और बडा ना होते हुए बेहद छोटा और कम ऊंचाई पर स्थित है। ऐसा माना जाता है की भगवान राम ने अपने वनवास के समय में यहां आकर आराम किया था। यहापर उनकी सेझ थी। इस लिए इस किले को रामसेज का किला कहा जाता है।
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Ramshej fort images |
रामसेज का इतिहास/Ramshej History
छत्रपती शिवाजी महाराज के देहांत के बाद औरंगजेब ने दख्खन को काबीज करने की ठान ली। और शुरूआत स्वराज्य से करी, 1682 ये वो साल था जब औरंगजेब ने स्वराज्य पर जीत हासिल करने के लिए अपने बडे बडे खूंखार और सुरमा सरदारो के साथ मिलकर हमले की योजना बनाई।"पहली जीत से हौसला बुलंद होता है।"
ये औरंगजेब भली भाती जानता था। इसलिए वो चाहता था की पहले हमले में जीत जल्द से जल्द मिले। ताकि उसके सेना का मनोबल और बढे।औरंगजेब ने स्वराज्य की कमजोर कडी पर वार करने की सोची यहीपर कमजोर कडी का अर्थ है कमजोर और छोटे किले क्योकि स्वराज्य की जान किलो में बसती है।
उन किलो में सबसे आगे नाम आया रामसेज का।बेहद छोटा कम ऊंचाई पर बसने वाल् इस किले पर सैनिकों की संख्या सिर्फ 600 और तो और किलेदार भी बुढा। इसलिए जल्द से जल्द जीत हासिल करने के लिए रामसेज का किला सबसे अच्छा था।औरंगजेब ने अपने सबसे खूंखार सरदारों मे से एक शहाबुद्दीन खान को रामसेज पर चढाई के लिए भेज दिया। साथ मे दस हजार का सैन्य,हाथी,घोडे और तोफे भी दियी। शहाबुद्दीन खान और औरंगजेब को लगा कि एक-दो दिन मे ही किला काबीज हो जायेगा और ऐसा लगना जायज भी था क्योंकि दस हजार के सैन्य और बड़ी बड़ी तोपों के आगे छहसो मावले कहातक टिक पायेंगे? पर मुगलों का यह वहम जल्द ही टुटने वाला था।
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battle of ramshej |
साल 1682 मे शहाबुद्दीन खान ने रामसेज पर हमला कर दिया। हमला करते ही उसका किला जल्द काबीज करने का वहम भी टुट गया। उसके एक-दो दिन दो सालों मे बदल गये पर उसे जीत हासिल नहीं हो पायी। जब भी मुगल सेना हमले के लिए आगे बढती तब किले के पास आते ही मराठे उनपर पत्थरों की बौछार कर देते। मुगलों के कई सैनिक ऐसे ही कई पत्थरबाजी मे मारे गये। मराठा मावलो ने मुगल सेना को कभी भी किले के पास तक आने नहीं दिया। कुछ महीनों बाद शहाबुद्दीन ने जाना की ऐसे तो कुछ होने वाला नहीं है। उसने किले पर तोपें दाग दी।
"अब तो किला हाथ में आना ही चाहिए"- शहाबुद्दीन खान
लेकिन मराठे पिछे हटने वालों में से नहीं थे। जब भी तोफो से किले की दीवार गिरती तब तब मराठे रातोरात वो दीवार फिर से बना लेते। दो दिनों के दो साल हो गये। दस हजार की सेना,तोफगोले,हाथियों के होते हुए भी शहाबुद्दीन के सैनिक और अधिकारी मारे जा रहे थे। फिर भी मुगल सेना किले के पास तक नहीं जा पायीं। इसलिए औरंगजेब शहाबुद्दीन खान पर बहुत नाराज हुआ। और उसे वापस बुला लिया। पर फिर एक बार शहाबुद्दीन खान को मौका दिया गया। इसी बीच किले पर तैनात मराठो ने इतिहास मे पहली बार लकड़ी की तोपें बनायीं और उसके लिए काफी सारे गोले शहाबुद्दीन की सेना से ही लुट लायें। और इसी बीच मराठो की सेना की कई तुकडीया मुगल सेना पर कई बार हमला करके भाग जाया करती थी। और उपर से मुगलों को मिलने वाली रसद मराठे बीच रास्ते में ही लूट लेते थे।
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ramsej killedar (representative image) |
शहाबुद्दीन खान से कुछ भी नहीं हो पा रही था। ये देखकर औरंगजेब ने अपने सौतेले भाई बहादुर खान (खानजहाँ बहादुर ) को शहाबुद्दीन खान की मदद के लिये भेज दिया और सिलसिला शुरू हुआ; औरंगजेब का एक एक सुरमा सरदार रामसेज जितने के लिए आता गया और खाली हात वापस लौटता गया। फिर कहीं से मुगल सेना मे ये अफवा फैल गई की किले की रक्षा मराठो के भूत कर रहे हैं। ये खबर मुगल कोकलताश को मिली।
अब बर्बादी का आलम की मुगल सरदारों ने भी इसपर विश्वास कर लिया। भूको को भगाने के लिये मांत्रिक को लाया गया। मांत्रिक ने सौ तोले सोने के साप की मांग की,ये मांग पुरी की गयी।मांत्रिक ने कहा कि इस साप को लेकर मैं आगे चलुंगा और मुगल सेना मेरे पिछे पिछे आयेगी। चढाई करने के बाद जैसे ही मुगल सेना किले के पास पहुँची मराठो ने जोरो शोरो से पत्थरबाजी करना शुरू कर दिया। मुगल सेना जैसे उपर आयी थी वैसे ही वापस भाग खडी हुई। फिर मुगल सरदारों ने लकड़ी का दमदमा खडा करके उसपे से तोपें दागने की कोशिश की लेकिन मराठो ने दमदमा ही जला दिया।
आखिर कार असहाय होकर औरंगजेब अपनी सेना रो पिछे हटा लिया। और रामसेज को काबीज करने का खयाल ही छोड दिया। मराठो के सबसे कमजोर किलो में से एक किला भी औरंगजेब जीत नहीं पाया। इसी से स्वराज्य और छत्रपती के प्रति मराठो की निष्ठा,प्रेम,और बहादुरी दिखाई देती है।
स्वराज्य को अगर किसी से धोखा था तो वो था ' घर का भेदी' इस किलेदार के बाद जो दुसरा किलेदार आया वो औरंगजेब के साथ जा मिला और किले पर मुगल सल्तनत का परचम लहराया गया। ये बडी दुख की बात है की कुछ पैलो के लिये लोग अपना जमीर भूलकर अपनो को धोका दे देते हैं।
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